
(1) पानी मैनेजमेंट:- किसान भाईयों जैसा कि हम सभी इतिहास एवं पौराणिक कथाओं के माध्यम से जानते हैं कि सर्व प्रथम सिंचाई योजनाएं, भागीरथ द्वारा गंगा को पृथ्वी पर लाए जाने में सफलता मिली है। इससे स्पष्ट है कि हमारा देश भारत में प्राचीन काल से ही सिंचाई पर जोर दिया जाता रहा है। वर्षा से प्राप्त जल संसाधनों के रूप में जल संग्रह की स्थानीय सुविधाओं में बड़े-बड़े डैम, बांध, नहर, तालाबों और अन्य साधनों को देश के प्राचीन काल में बड़े-बड़े राजाओं द्वारा भी सिंचाई योजनाओं को महत्व दिया जाता रहा है। भारत में आजादी के बाद भी हमारे देश की सरकारों ने भी सिंचाई योजनाएं को विकसित करने के लिए विभिन्न प्रकार की योजना किसानों को सरकार कि ओर से दी जाती रही, जिससे देश के किसानों को सिंचाई प्रबंधन में काफी सुधार हुआ है। जैसे:- छोटी नदियों में चेकडैम, तालाब, बांध, छोटी नहर, बड़ी नहर, झिलों, झरनों, कुंआँ, बोरवेल एवं छोटे-छोटे डोभा के द्वारा आज किसानों को सिंचाई की सुविधा प्राप्त होती है।
(क) सिंचाई विधि एवं जल प्रबंधन:-
जल प्रबंधन के उपाय:- जल प्रबंधन का सबसे सर्वप्रथम उपाय यह है कि वर्षा जल संचित का उचित प्रबंधन किया जाए और वर्षा जल को जलाषयों में संरक्षित करना होगा। वर्षाजल की भूमि पर बहने वाली एक-एक बुंद पानी या जल को नदी या नालों में जाने से रोकना होगा, पानी को रोकने हेतु चेकडैम, तालाबों, सोकपिट, नलकुपों, कुंआँ एवं किसान भाईयों अपने खेतों के चारों तरफ ट्रेंच कटवा देने से वर्षाजल को भूगर्भ तक पहुंचाने के साथ में वर्षाजल को रोका जा सकता है। साथ में ट्रेंच कटवाने से अपने खेत में जानवरों को भी जाने से रोका जा सकता है।
I. ड्रिप इरिगेशन विधि:- ड्रिप इरिगेशन (DRIP IRRIGATION) या (Trickle Irrigation) या (Micro-Irrigation) या Localized Irrigation सिंचाई की एक विशेष विधि है। जिसमें पानी और खाद एवं दवाईयों को फसलों तक एक साथ पहुंचाई जाती है। साथ में इस विधि से पानी, समय एवं खाद की काफी बचत होती है। इस विधि में पानी को पौधों की जड़ों पर बुुंद-बुंद करके टपकाया जाता है। इसलिए इस विधि को टपक सिंचाई या बूंद-बूंद सिंचाई भी कहा जाता है। ड्रिप सिंचाई से 30-80 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है। जिससे बचे हुए जल से अधिक भूमि या क्षेत्र में सिंचाई की जा सकती है।
इस विधि की प्रमुख विशेषताएं हैं, कि पानी भूमि को नहीं बल्कि फसल या पौधे को दिया जाता है। भूमि में पानी की मात्रा, क्षेत्र क्षमता, स्थिर बनी रहने से फसल की वृद्धि तीव्र एवं समान रूप से होता है। जड़ क्षेत्र में जल मिट्टी एवं वायु के प्रभाव की हमेशा संतुलित रखा जाता है। फसल को प्रायः एक दिन छोड़कर तथा गर्मियों के दिनों में प्रतिदिन पानी दिया जाता है।
भूमि जल मौसम और फसल का अध्ययन कर कम दबाव और नियंत्रण के साथ फसलों की जड़ों तक उनकी आवश्यकतानुसार एक समान रूप से पानी देना को ही ड्रिप सिंचाई कहते हैं। इस पद्धति में भूमि में जल रिसने की गति से कम गति पर फसल की सतह या भूमि के नीचे पानी दिया जाता है। इस पद्धति में पानी बूंद-बूंद या अत्यंत पतली धार से दिया जाता है ताकि इस पद्धति का पूर्ण रूप से लाभ उठाया जा सके।
ड्रिप इन लाईन विधि रासायनिक एवं जैविक खाद की जरूरत में 30-45 प्रतिशत तक कमी होती है। इसे फसल उत्पादन लागत में कमी होती है और फसलों को खाद एक समान रूप से पौधों तक पहुंचाई जाती है और पानी एवं खाद पौधों की जड़ों के आस-पास जाने से पौधों की अगल-बगल की भूमि सुखी रहने के कारण अनावश्यक खरपतवार विकसित नहीं हो पाता है। जिससे भूमि में उपलब्ध सभी पौष्टिक तत्व सिर्फ पौधों को ही प्राप्त होता है। इसमें कीटनाशकों , फफुंद नाशकों की कम मात्रा में खपत होती है।
ड्रिप सिंचाई के प्रकार
1) इन लाईन विधि:- इस विधि में जे-टर्बो, जे टर्बो क्युयरा जे टबोरलीम आदि शामिल होते हैं। इसमें लेट अरल के अंदर एक निष्चित दूरी पर ड्रिप निर्माण के समय ही ड्रिपर्स लगा दिए जाते हैं। इस ड्रिप को गन्ने, सब्जियों, फलों, स्ट्रोबेरी और कपास जैसी फसलों के लिए यह अत्यंत उपयुक्त मानी जाती है और इस विधि में ड्रिपर्स की दुरी फसल व पानी की आवश्यकता के अनुसार निर्धारित की जाती है।
2) ऑन लाईन विधि:- इस विधि में डिपर लैटरली के उपर एक निश्चित दूरी पर लगाया जाता है। इसमें डिपर नली के उपर छेद करके लगाया जाता है। इस विधि में बहुवर्षीय वृक्ष या पेड़ों जो लगातार फलों का उत्पादन करने वाले या दूर और लम्बे दूरी पर लगाए जाने वाले फल, वृक्षों के लिए उपयुक्त माना गया है। जैसे:- आम, सरिफा, संतरा, चीकू, नींबू, अमरूद, बेर, अनार, अंगुर, पपीता, मौसमी, नारियल, बांस, सागवान आदि पेड़ पौधे शामिल हैं।
3) माइक्रो जेटस:- कभी-कभी फसल की वृद्धि हेतु सिंचाई के साथ एक निश्चित आर्द्रता भी आवश्यक होती है। ऐसी परिस्थितियों में माइक्रो जेटस का प्रयोग किया जाता है। इस विधि में कोमल पौधा एवं फुलों जो बड़ी बूंदों को सहन नहीं करने की क्षमता होती है। इस तरह के फसलों में माइक्रो जेटस ड्रिप का प्रयोग उपयोगी माना जाता है। और इनका प्रयोग हल्की व रेतीली भूमि में अधिक मात्रा में किया जाता है। जिससे अधिक मात्रा में पानी देने और अधिक फैलाव वाले पौधों के लिए किया जाता है।
4) मिनी स्प्रिंकलर्स:- यह विधि में मिनी स्प्रिंकलर्स कम दबाव से लेकिन अधिक तीव्र गति से पानी फेंकता है। जिससे भूमि का अधिक क्षेत्रफल कम समय में पानी से भिंगोया जा सकता है। इस विधि का उपयोग ग्रीन हाउस, पौधशाला (नर्सरी), बागीचों एवं साग सब्जियों की फसलों के लिए मिनी स्प्रिंकलर्स लगाना अधिक लाभदायक होता है।
सोलर उर्जा:- सामान्य भाषा में हम सौर या सोलर उर्जा का तात्पर्य सूर्य से प्राप्त होने वाली उर्जा या एनर्जी को सौर उर्जा कहते हैं। किसान भाईयों यदि आप फसल उत्पादन खर्च को कम करना चाहते हैं तो आपको सिंचाई के लिए सोलर सिस्टम को अपनाना होगा। इससे सिंचाई में लगने वाली वाटर डिजल पम्प का खर्च एवं बिजली की खर्च कम किया जा सकता है और साथ में समय का भी बचत होगा। इसके लिए आपको बिजली तथा लो वोल्टेज जैसी कई तरह के मुद्दों का सामना नहीं कररना पड़ेगा। किसान भाईयों हमें समझना पड़ेगा कि हमें फसल को पानी देना है और हम बिजली का इंतजार करते रहते हैं। हम बिजली आने का रास्ता देखते रहते हैं। इधर हमारा फसल बर्बाद होते रहता है। जिसके फलस्वरूप हमारा उत्पादन कम हो जाता है। और हम किसान भाई बैठ कर सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि मेरी फसल अच्छी नहीं हुई, जिससे खेती के प्रति आत्मविश्वास समाप्त होती जाती है। किसान कर्ज में डूबता चला जाता है। जिस प्रकार मनुष्य और फसलों को हवा के बिना जिंदा नहीं रखा जा सकता ठीक उसी प्रकार इस पृथ्वी की पेड़ पौधों, जिव जन्तु बिना पानी के जिवीत एवं स्वस्थ नहीं रह सकते। खेती के लिए सिंचाई जल की उपलब्ध अति आवश्यक है। किसान भाईयों मुझे लगता है कि सिंचाई के लिए सोलर सिस्टम सबसे उत्तम साधन है। सरकार की भी सोलर एनर्जी पर ढ़ेर सारी योजनाएं हैं। इसका लाभ उठाना चाहिए। R P G Organic Farming Pvt. Ltd आप सभी रजिस्टर्ड पूरे झारखंड के किसानों के लिए प्रतिबंध है कि सिंचाई की समुचित व्यवस्था के लिए सोलर सिस्टम सब्सिडी पर एवं बोरिंग (बोरवेल) करवाने की उपलब्धता पूरे झारखंड राज्य में उचित मूल्य पर किसानों के लिए उपलब्ध होगी।